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RAJENDRA BHABAR

नौकरी: मजबूरी या जरूरत?

  नौकरी: मजबूरी या जरूरत? एक आम इंसान की कहानी जब बच्चा स्कूल जाता है, तो उससे अक्सर पूछा जाता है — "बड़े होकर क्या बनोगे?" कोई डॉक्टर कहता है, कोई इंजीनियर, कोई अफसर। पर बहुत कम बच्चे कहते हैं, “मैं नौकरी करूंगा।” असल में, नौकरी एक सपना नहीं, एक वास्तविकता है — कभी मजबूरी , कभी जरूरत , और कभी प्राप्ति का साधन । देश में  सरकारी सेवा में कार्यरत लोगों की संख्या 9 प्रतिशत है और 12 प्रतिशत निजी रोज़गार में हैं। यह जानकारी ILO की वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट और सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट 2025 में दी गई है। भारत में 2024 में कार्यशील जनसंख्या 2.55 करोड़ लोग थे। ILO के मुताबिक, 2025 में यह आंकड़ा 2.61 करोड़ हो सकता है ।  नौकरी करना: मजबूरी या जरूरत? मजबूरी तब बनती है :-  जब परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो। शिक्षा अधूरी रह जाए, कोई हुनर न हो, और पैसा कमाना ही एकमात्र लक्ष्य रह जाए,इस स्थिति में नौकरी करना मजबूरी बन जाती है । उस वक्त सिर्फ और सिर्फ नौकरी पर निर्भर रहता है । व्यक्ति फिर यह नहीं देखता नौकरी कैसी, है जैसी भी भी हो बस वह करना चाहता है । व्यक्ति की आर्थिक स...

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