ज़रूरत पड़ने पर ही याद करना – कहाँ तक सही कहाँ तक गलत ?

लोगों को सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही याद करना – कहाँ तक सही कहाँ तक गलत ?



हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ रिश्तों की बुनियाद आपसी समझ, भावनात्मक जुड़ाव और समय की कद्र पर टिकी होती है। लेकिन आजकल एक आम अनुभव यह होता जा रहा है कि लोग आपको सिर्फ तभी याद करते हैं जब उन्हें आपकी कोई ज़रूरत होती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है – क्या लोगों को सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर याद करना उचित है? यह सवाल केवल व्यवहार का नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और नैतिक मूल्यों का भी है। लोगों को सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही याद करना" एक भावनात्मक रूप से पेचीदा और सामाजिक रूप से संवेदनशील विषय है। इसे सही या गलत के तौर पर तय करना हर परिस्थिति पर निर्भर करता है, लेकिन इसे कुछ दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:

रिश्तों का असली मतलब क्या है?

रिश्ते केवल नाम और खून के नहीं होते, वे भावनाओं से बनते हैं। जब कोई सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर हमें याद करता है और बाकी समय हमसे कोई संपर्क नहीं रखता, तो वह रिश्ता केवल सुविधा का साधन बनकर रह जाता है। सच्चा रिश्ता वह होता है जिसमें सुख-दुख में साथ हो, बिना किसी स्वार्थ के भी हालचाल पूछा जाए, और ज़रूरत से पहले आत्मीयता हो।

इंसानी स्वभाव और स्वार्थ

मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपने फायदे और ज़रूरतों को प्राथमिकता देता है। जब किसी की ज़रूरत होती है, तब वही इंसान उसे सबसे पहले याद आता है। यह स्वार्थ का हिस्सा हो सकता है, लेकिन हर बार इसका अर्थ नकारात्मक नहीं होता। यह कहना भी गलत होगा कि हर बार ज़रूरत पर याद करना स्वार्थ का प्रतीक है। कई बार लोग व्यस्तताओं में उलझे होते हैं, लेकिन जब उन्हें मदद की ज़रूरत होती है, तो वे उन्हें याद करते हैं जिन पर उन्हें विश्वास होता है। इसलिए यह भी एक तरह का सम्मान है, जब कोई आपको ज़रूरत के समय याद करता है। इसका मतलब है कि आप उनके लिए भरोसेमंद हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वे क्या आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं या नहीं।

अगर कोई व्यक्ति सिर्फ तभी याद करता है जब उसे ज़रूरत होती है, और बाकी समय आपको नज़र अंदाज करता है, तो यह रिश्ता एकतरफा हो सकता है। ऐसे रिश्ते आपको भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचा सकते हैं।

प्रयोग बनाम सम्मान

  • यदि कोई व्यक्ति बार-बार आपको सिर्फ अपने फायदे के लिए याद करता है और बदले में आपकी भावनाओं या समय की कद्र नहीं करता, तो यह "प्रयोग" की श्रेणी में आता है। वह व्यक्ति सिर्फ उसकी जरूरत के हिसाब से आपका सिर्फ प्रयोग कर रहा है । ऐसे व्यक्ति के आप काम मे तो आ जाते है लेकिन वह व्यक्ति आपके काम में आएगा इस बात की संभावना बहुत ही कम होती है । 

  • वहीं अगर कोई ज़रूरत के समय याद करता है लेकिन आपका आभार मानता है, आपको सम्मान देता है, तो वह संबंध अभी भी मूल्यवान हो सकता है। वह व्यक्ति आपकी भावनाओं की कद्र भी करेगा आपको सम्मान  भी देगा साथ ही जब आपको उसकी जरूरत होगी तो वह भी आपके काम आएगा । 

आत्मसम्मान बनाम उदारता

अगर कोई व्यक्ति बार-बार आपको सिर्फ अपनी सुविधा के समय याद करता है और बाकी समय आपकी कोई कद्र नहीं करता, तो यह आपके आत्मसम्मान को चोट पहुँचा सकता है।

ऐसी स्थिति में आपको यह तय करना होगा कि :- क्या आप सिर्फ किसी के "काम के वक्त" दोस्त बनकर रहना चाहते हैं? या फिर आप ऐसे रिश्तों को सीमित कर, अपनी ऊर्जा उन लोगों में लगाना चाहते हैं जो हर परिस्थिति में आपके साथ खड़े हों? उदार होना अच्छा है, लेकिन किसी के द्वारा बार-बार उपयोग किए जाने से बेहतर है सीमाएं बनाना।

कभी-कभी लोग मजबूर भी होते हैं

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हर वक़्त संपर्क में नहीं रह सकते, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर याद करते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा है कि आप साथ देंगे। हो सकता है की  वह अपनी रोजमरा ज़िंदगी में इतने व्यस्त हो की उन्हें आपसे संपर्क करने का समय ही ना मिल पा रहा हो या उन पर कार्य का बोझ ही इतना हो की वह आपसे संपर्क कर सके, ऐसे लोगों को तुरंत स्वार्थी कहना शायद ठीक नहीं होगा।

सामाजिक मूल्य और भावनात्मक समझ

हमारा भारतीय समाज 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना से प्रेरित है, जिसमें पूरी दुनिया को परिवार माना गया है। इसमें एक-दूसरे की मदद करना और ज़रूरतमंद का साथ देना हमारी संस्कृति की पहचान है। लेकिन अगर यह भावना एकतरफा बन जाए — यानी आप दूसरों के लिए हमेशा तैयार रहें और वे आपके लिए कभी न हों — तो यह असंतुलन रिश्तों को खोखला कर देता है। ऐसे व्यक्ति ना तो सामाजिक मूल्यों को समझते है और ना ही आपकी भावनाओं को समझते है । " हर रिश्ता दो तरफा होता है — एकतरफा प्रयास सिर्फ थकावट और टूटन लाता है "  इसलिए रिश्ते को दोनों तरफ से निभाना जरूरी होता है । 

आपको क्यों याद किया गया — यह सबसे अहम सवाल है !

ज़रूरत पर याद किया जाना बुरा नहीं है, लेकिन जिस उद्देश्य से कोई आपको याद करता है, वह महत्वपूर्ण है।

  • यदि कोई व्यक्ति सिर्फ काम निकालने के लिए आपसे  संपर्क करता है और बाद में गायब हो जाता है, तो यह रिश्ता आत्मीय नहीं, व्यावसायिक बन गया है।

  • लेकिन अगर कोई कठिन समय में आपको याद करता है और आपके की सराहना करता है, तो वह कृतज्ञता का भाव दर्शाता है।

इसलिए हर बार खुद से यह सवाल करें — “क्या मैं केवल एक साधन बन रहा हूँ, या मेरे मूल्य को समझा जा रहा है?”

जब आप खुद किसी को याद करें, तो दिल से करें

इस विषय पर सोचते हुए हमें यह भी देखना चाहिए कि हम खुद दूसरों को कब और क्यों याद करते हैं? क्या हम भी उन्हीं लोगों को याद करते हैं जिनसे हमें कुछ चाहिए होता है? क्या हम बिना किसी स्वार्थ के भी किसी का हालचाल पूछते हैं? अगर नहीं, तो हमें पहले खुद में बदलाव लाना होगा। समाज को बेहतर बनाने की शुरुआत हमेशा अपने आप से होती है।

आपका निर्णय ज़रूरी है

आप यह तय कर सकते हैं कि आप ऐसे रिश्ते में समय, ऊर्जा और भावनाएं लगाना चाहते हैं या नहीं। अगर आपको लग रहा है कि कोई आपको सिर्फ एक साधन की तरह देखता है, तो उस स्थिति में सीमाएं तय करना ज़रूरी है। ऐसे हालात में आप यह तय करने की आपको किसी की जरूरत का साधन बनना है या आत्मसम्मान को बनाए रखना है । 

✦ कब यह अनुचित लगता है:

  1. भावनात्मक रूप से उपयोग करना – अगर आप किसी को सिर्फ तब याद करते हैं जब आपको उसकी मदद चाहिए, लेकिन उसके सुख-दुख में साथ नहीं देते, तो वह रिश्ता एकतरफा बन जाता है। ऐसी स्थिति में सामने वाले की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है । 

  2. रिश्तों में असंतुलन – बार-बार ऐसा होने पर सामने वाला व्यक्ति खुद को ‘इस्तेमाल किया हुआ’ महसूस करने लगता है। इससे रिश्तों में दरार आती है साथ ही आपका एक रिश्ता टूटने का असर आपके अन्य रिश्तों पर भी नकारात्मक असर पढ़ सकता है । 

  3. विश्वास की कमी – लोग ऐसे व्यवहार को देखकर भरोसा करना बंद कर देते हैं, जिससे आपकी छवि तो खराब होती ही है लेकिन इसका नकारात्मक असर आपकी सामाजिक छवि को,भी धूलित करता है ।  जिस से समाज में भी आपकी नकारात्मक छवि फैलती है । 

✦ कब यह ज़रूरी या सामान्य होता है:

  1. प्रोफेशनल संबंधों में – कामकाज के रिश्तों में अक्सर ज़रूरत के हिसाब से संपर्क होता है, और यह पूरी तरह से ठीक है। ऐसे में आपको समझना चाहिए और सामने वाले को समझना चाहिए , और रिश्ते में ताल-मेल दोनों तरफ से बना कर रखें । 

  2. कम संपर्क वाले रिश्ते – कई बार हम व्यस्तताओं के चलते अपनों से नियमित बात नहीं कर पाते, लेकिन ज़रूरत के समय याद करते हैं। अगर भावना सच्ची हो, तो यह बुरा नहीं माना जाता। साथ ही हम हमारे समय के हिसाब से भी इस बात का अंदाजा लगा सकते है की हमारे पास अगर संपर्क करने के लिए समय नहीं है तो हो सकता है की सामने वाले के पास भी इसी तरह समय का आभाव होगा । 

✦ संतुलन कैसे बनाएं?

  • कभी-कभार बिना किसी ज़रूरत के भी लोगों का हाल-चाल पूछें।
  • मदद मांगने से पहले पिछली बातचीत पर नज़र डालें — क्या आपने कभी बिना किसी स्वार्थ के बात की थी?
  • संबंधों को “लेन-देन” से ज़्यादा “सहभागिता” समझें।
  • अगर आप ज्यादा ही व्यस्त रहते है तो बीच बीच में समय निकालकर आपस में मिलें । 
  • किसी भी भी पारिवारिक या सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होने हेतु  समय निकले । 

निष्कर्ष: रिश्तों को सिर्फ ज़रूरत नहीं, संवेदना चाहिए

लोगों को सिर्फ ज़रूरत के समय याद करना अगर एक आदत बन जाए, तो यह सामाजिक भावनाओं को खोखला कर देता है। सच्चे रिश्ते केवल ज़रूरत से नहीं, संवेदना से चलते हैं। यदि आप किसी के लिए सिर्फ एक "इस्तेमाल की जाने वाली चीज़" बनकर रह गए हैं, तो सोचिए — क्या आपको वैसा रिश्ता चाहिए?

और अगर आप किसी को बिना स्वार्थ के याद करते हैं, तो आप वास्तव में रिश्तों की गहराई को समझते हैं।

इसलिए—याद करें, पर दिल से। मदद करें, पर आत्मसम्मान के साथ। और रिश्ते निभाएँ, पर सिर्फ ज़रूरत के लिए नहीं।

"ज़रूरत पर याद करना" गलत नहीं है, लेकिन सिर्फ उसी समय याद करना और बाकी समय नज़र अंदाज करना रिश्तों की गरिमा को चोट पहुँचा सकता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे व्यवहार को कितनी जगह देते हैं।

किसी व्यक्ति को केवल ज़रूरत पड़ने पर ही याद करना एक व्यावहारिक व्यवहार हो सकता है, लेकिन मानवीय रिश्तों के लिहाज़ से यह अक्सर अनुचित और स्वार्थी माना जाता है। सिर्फ ज़रूरत पर ही किसी को याद करना तब तक गलत नहीं है जब तक आप उस रिश्ते को इज़्ज़त और संवेदनशीलता से निभा रहे हैं। लेकिन अगर यह आदत बन जाए, तो आपको खुद से यह सवाल ज़रूर पूछना चाहिए — "क्या मैं रिश्तों को केवल सुविधा के लिए निभा रहा हूँ?"

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