रिश्तों को तोड़ती उधारी !
उधारी कभी कभी रिश्तों में दरार डाल देती है ! जब कभी भी रिश्तेदारी में उधारी का व्यवहार किया जाता है तो उन रिश्तों में दरार का आना तय हो हि जाता है । लेकिन या यह दोनों रिश्तेदारों की मानसिकता पर निर्भर करता है । यह दरार तब आती है जब एक देने में सक्षम नहीं हो और दूसरा मांगने के लिए दबाव बना रहा हो। या फिर उसका उल्टा भी हो सकता है कि लेने वाला देने में सक्षम हो और जान बूझकर ना दे रहा हो। समझदार इंसान तो पूरा एक साथ हि ना सही लेकिन थोड़ा थोड़ कर के उधारी चुका देगा, लेकिन जिसे देना हि नहीं हो वो जानबूझकर नहीं देगा। उधारी का व्यवहार दोनों पक्षों की आपसी सहमति से बना रहता है, लेकिन अगर किसी एक पक्ष का भी मनमुटाव रिश्तों में दरार डाल देता है । उधारी को चुकाने में दोनों पक्षों कि सहमति जरुरी है, दोनों पक्षों को समझना चाहिए कि लेने वाले को समझना चाहिए कि सारी उधारी एक साथ ना उतार पाए तो धीरे धीरे उतारने कि कोशिश करें और देने वाले को भी इस बात को समझना चाहिए। उधारी का व्यवहार तब तक खराब नहीं होता जब तक किसी एक में कोई मनमुटाव ना हो या किसी में अहंकार आ गया हो। रिश्तों को बरकरार रखने के लिए देने वाले को कभी भी यह नहीं जताना चाहिए कि उसने उसे उधार दिया है तब जा कर उसकी समस्या का समाधान हुवा है, और लेने वाले को हमेशा याद रखना चाहिए कि पुरी उधारी एक साथ ना सही पर थोड़ी थोड़ी कर के चुकानी है ।
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