वो कानून जो महिलाओं के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन पुरुषों के लिए नुकसानदायक भी है
भारत जैसे देश में, जहां सदियों से महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रूप से दोयम दर्जे का माना जाता रहा है, वहां महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए जाना जरूरी था। लेकिन हाल के वर्षों में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां इन कानूनों का दुरुपयोग किया गया और कई निर्दोष पुरुष कानूनी लड़ाई में फंस गए। इस लेख में हम ऐसे कुछ कानूनों की चर्चा करेंगे, जिनका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा देना है, लेकिन जिनके गलत इस्तेमाल से पुरुषों की जिंदगी बर्बाद हो सकती है। साथ ही हम देखेंगे कि इस स्थिति से निपटने के लिए पुरुषों को क्या करना चाहिए और सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए।
ऐसे कुछ कानून जो अक्सर चर्चा में रहते हैं:
1. धार 498A ( दहेज प्रताड़ना ) :- यह कानून महिलाओं को ससुराल पक्ष से दहेज के लिए होने वाली प्रताड़ना से बचाने के लिए बना है, लेकिन कई मामलों मे से झूठे आरोपों के लिए इस्तेमाल किए जाने की शिकायतें आई है ।कुछ मामलों मे देखा गया है की पत्नी और उसके परिवार द्वारा झूठे आरोप लगाए जाते है, जिससे न की सिर्फ पति बल्कि उसके माता-पिता और रिश्तेदार भी कानूनी पचड़े में फस जाते है ।
शनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 498A के अंतर्गत दर्ज मामलों में से लगभग 80% मामलों में गिरफ्तारी तो होती है, लेकिन अंतिम सजा का प्रतिशत बहुत ही कम है।
2. घरेलू हिंसा अधिनियम ( (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) : महिलाओं की सुरक्षा के यह कानून जरूरी है, लेकिन कई बार इसमें पुरुष पक्ष की सुनवाई से पहले ही दोषी मान लिया जाता है । यह कानून महिलाओं को मानसिक,शारीरिक,यौन और और आर्थिक प्रताड़ना से बचाने के लिए बनाया गया है । लेकिन यह पूरी तरह एक तरफा है, इस कानून में पुरुषों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है । कई बार इसे आपसी झगड़ों मे उलझाने के तौर पर इस्तेमाल लिया जाता है ।
3. बलात्कार से संबधित कानून (IPC की धारा 376): बलात्कार जैसे अपराध पर सख्त कानून जरूरी है, लेकिन झूठे आरोपों की संख्या बढ़ने से निर्दोष पुरुषों पर प्रभाव पड़ता है । इस कानून की आड़ मे कई झूठे रेप केस भी सामने आए है जिसमे बाद मे पीड़िता खुद बयान बदल देती है या मामला पैसे लेकर सुलझा लिया जाता है ।
महिलाओं की सुरक्षा लिए कानून जरूरी तो है लेकिन कुछ महिलाओं की वजह से इन कानूनों का दुरुपयोग भी किया जा रहा है । इन कानून की आड़ में ,महिलायें पुरुषों को इतना प्रातड़ित किया जाता है की बेचारे पुरुष आत्महत्या तक कर लेते है। इनके हमें कई उदाहरण देखे है । झूठे आरोपों का असर समाज पर भी नकारात्मक पड़ता है
- निर्दोष पुरुष जेल चले जाते हैं।
- सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होती है।
- मानसिक तनाव, आर्थिक हानि और पारिवारिक विघटन होता है।
- पुरुषों के माता-पिता, बहन-भाई भी केस में फंस जाते हैं।
💔 झूठे केसों का असर पुरुषों पर:
क्षेत्र | प्रभाव |
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मानसिक :- | डिप्रेशन, आत्महत्या की प्रवृत्ति, सामाजिक शर्म |
आर्थिक :- | वकीलों की फीस, नौकरी से निकालना, खर्च बढ़ना |
पारिवारिक :- | तलाक, बच्चों से अलगाव, रिश्तों में कड़वाहट |
सामाजिक :- | बदनामी, सामाजिक बहिष्कार, करियर पर असर |
1. कानूनी जानकारी रखें: कौन-कौन से कानून आपके खिलाफ इस्तेमाल किए जा सकते हैं, और आपकी कानूनी रक्षा क्या हो सकती है — इसकी समझ जरूरी है। झूठे आरोप लगने की स्थिति में उन्हें क्या कदम उठाने हैं, यह समझना जरूरी है।2. सबूत संजोकर रखें: रिश्तों में संवादों (चैट, ईमेल, कॉल रिकॉर्ड) का बैकअप रखें। यह अदालत में मदद कर सकता है।3. काउंसलिंग और कानूनी सलाह लें: छोटी बातों को नजर अंदाज करने की जगह, समय रहते परिवार परामर्श या वकील की मदद लें।4. भावनात्मक नियंत्रण बनाए रखें: आरोप लगने पर घबराएं नहीं, बल्कि शांत रहकर कानूनी तरीका अपनाएं।
1. कानूनों की समय-समय पर समीक्षा: यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि महिलाओं की सुरक्षा के कानून का दुरुपयोग न हो।समय-समय पर कानूनों की समीक्षा कर यह सुनिश्चित करना कि उनका दुरुपयोग ना हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी 498A के दुरुपयोग पर चिंता जताई है और कुछ दिशानिर्देश दिए हैं।2. फर्जी मामलों पर सख्त सजा: अगर कोई महिला जानबूझकर झूठा केस करती है, केस झूठा साबित होने पर सख्त दंड का प्रावधान होना चाहिए, जिससे झूठे आरोप लगाने से लोग डरें।झूठे केसों के लिए IPC 182, 211 के तहत सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।3. Gender Neutral कानून की जरूरत: कई विशेषज्ञ मानते हैं कि घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना जैसे कानून जेंडर न्यूट्रल होने चाहिए ताकि हर पक्ष को न्याय मिले।4. पुरुष आयोग की स्थापना: जिस तरह महिला आयोग महिलाओं की समस्याएं उठाता है, वैसे ही पुरुषों के लिए एक स्वतंत्र आयोग की भी स्थापना चाहिए। जिसमे महिलाओं द्वारा जिन पुरुषों प्रताड़ित किया जाता है उनका सहयोग किया किया जाए साथ ही समाज को भी इस बात से अवगत किया जाए कभी भी किसी पुरुष को तब तक गलत नहीं समझा जाए जब तक की किसी पुरुष पर आरोप साबित ना हो जाए । पुरुष को प्रातड़ित करने वाली महिला साथ ही जो जो भी पुरुष को प्रातड़ित करने या उस पर झुठा केस लगाने वालों पर सख्त से सख्त सजा दिलाने का प्रयास करे ।
5.
एक नजर इस पर भी डालते है की हमने जिन कानूनों की बात की है उन पर रेपोर्ट्स क्या कहती है !
🔍 IPC धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) के आंकड़े:
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार:
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हर साल लाखों केस 498A के तहत दर्ज होते हैं।
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लेकिन इन मामलों में सजा की दर (Conviction Rate) केवल 12-15% के बीच होती है।
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यानी 85-88% केसों में आरोपी या तो बरी हो जाते हैं या केस वापस ले लिया जाता है।
👉 इससे साफ है कि बड़ी संख्या में केस या तो साबित नहीं हो पाते, या झूठे होते हैं।
📊 उदाहरण: NCRB 2021 रिपोर्ट से कुछ आंकड़े (धारा 498A):
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दर्ज मामले: करीब 1,00,000 से ज्यादा
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सजा हुई: केवल 12,000 से कम
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75,000+ पुरुषों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें कई निर्दोष थे।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का नजरिया:
📌 Social Action Forum for Manav Adhikar बनाम भारत सरकार (2017):
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सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 498A का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है।
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कोर्ट ने कहा कि इस कानून में झूठे केसों की भरमार है और इससे परिवार टूट रहे हैं।
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कोर्ट ने सुझाव दिया था कि सभी मामलों में सीधे गिरफ्तारी ना हो, पहले परिवार परामर्श (Family Welfare Committee) से जांच हो।
🚫 बलात्कार के झूठे केसों पर क्या डेटा है?
कई रिपोर्टों और कोर्ट के फैसलों से यह सामने आया है कि:
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दिल्ली पुलिस की एक रिपोर्ट (2015) के अनुसार, दर्ज किए गए रेप केसों में से लगभग 33% केस झूठे पाए गए।
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इनमें अधिकतर मामले आपसी सहमति से संबंध होने के बाद रिश्ता टूटने या बदले की भावना से दर्ज किए गए थे।
🤔 कितने पुरुषों को 'झूठे केस' में सजा मिली?
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ऐसी कोई केंद्रीय रिपोर्ट नहीं है जो बताए कि निर्दोष पुरुषों को सजा हो गई, लेकिन यह सच है कि सिर्फ आरोप के आधार पर भी कई पुरुषों को सालों जेल में रहना पड़ता है और बाद में वे बरी होते हैं।
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उदाहरण: कई केसों में आरोपी पुरुष 6-10 साल जेल में रहकर अंत में बरी हुए हैं, क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे।
🧾 क्या झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को सजा मिलती है?
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बहुत कम मामलों में ऐसा हुआ है।
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भारतीय कानून में झूठी शिकायत के लिए IPC 182, 211 जैसे प्रावधान हैं, लेकिन इनका उपयोग बहुत ही सीमित स्तर पर होता है।
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समाज और पुलिस भी महिलाओं के खिलाफ केस दर्ज करने से संकोच करते हैं।
⚖️ कानून जो अक्सर दुरुपयोग की श्रेणी में आते हैं:
कानून | उद्देश्य | दुरुपयोग के आरोप |
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IPC धारा 498A - | दहेज प्रताड़ना के खिलाफ महिलाओं - की सुरक्षा | पुरुष व उनके परिवार के खिलाफ झूठे आरोप, फर्जी केस |
घरेलू हिंसा अधिनियम,- 2005 | महिलाओं को घरेलू शोषण से सुरक्षा - | पुरुषों के लिए कोई सुरक्षा नहीं, महिला का कथन ही पर्याप्त |
IPC धारा 376 - | बलात्कार से सुरक्षा - | सहमति से संबंधों को जबरन रेप केस में बदल देना |
यौन उत्पीड़न कानून (POSH) | कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा - की रक्षा | सहकर्मियों पर झूठे आरोप, प्रतिशोध की भावना |
महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून बेहद जरूरी हैं और उनका सम्मान होना चाहिए। लेकिन इन कानूनों का दुरुपयोग रोकना भी समाज की जिम्मेदारी है।इसमें पुरुषों और सरकार दोनों की भूमिका अहम है।जरूरी है कि कानूनों को संतुलित, सत्य आधारित और प्रत्येक पक्ष को सुनने योग्य बनाया जाए। समाज को भी ऐसे मामलों में संतुलित और तथ्यों पर आधारित नजरिया अपनाना चाहिए।जब महिला और पुरुष दोनों सुरक्षित होंगे, तभी एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना संभव है।
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