क्या BJP में शामिल होने पर सारे घोटाले माफ हो जाते है ?
🧾 भ्रष्टाचार और दल-बदल की राजनीति: कैसे BJP में आते ही नेता 'साफ़' हो जाते हैं?
2014 के बाद भारतीय राजनीति में एक नया चलन उभरा — विपक्षी नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगना, और फिर उनका BJP में शामिल होते ही केस ठंडे बस्ते में चला जाना।
यह केवल संयोग है या सत्ता का प्रभाव? इस सवाल ने लोकतंत्र की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारत में 2014 से लेकर आज तक (यानि कि जब से भारतीय जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में आई है), भ्रष्टाचार के आरोप कई नेताओं पर लगे हैं — लेकिन ऐसे नेता जिन पर भ्रष्टाचार सिद्ध भी हो गया हो, फिर भी उन पर मुकदमा न चला हो या कोई सजा न हुई हो, ऐसे मामलों में जानकारी बेहद संवेदनशील और कानूनी रूप से जटिल होती है।
"भ्रष्टाचार सिद्ध होना" का अर्थ है कि अदालत या कानूनी संस्था ने दोषी ठहराया हो। मीडिया रिपोर्ट या विपक्ष के आरोप सिद्धि नहीं माने जाते।
🔍 चर्चित मामले जिनमें आरोप लगे, पर सजा या मुकदमा नहीं हुआ (या लंबित है):
1. बाबुल सुप्रियो (पूर्व केंद्रीय मंत्री)
- आरोप: टोल प्लाजा घोटाले में नाम उछला था (2016)
- स्थिति: जांच शुरू हुई, लेकिन स्पष्ट रूप से कोई चार्जशीट नहीं आई।
- कार्यवाही: कोई केस दर्ज नहीं।
2. BS Yediyurappa (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री)
- मामला: 2009-2011 के दौरान भूमि घोटाले के आरोप।
- स्थिति: सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में उन्हें क्लीन चिट दी, लेकिन इससे पहले 2012 में जेल भी गए थे (उस समय BJP से बाहर थे)।
- निष्कर्ष: बाद में BJP ने उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया, मुकदमा बंद हो गया।
3. स्मृति ईरानी (वर्तमान मंत्री)
- विवाद: उनकी बेटी पर गोवा में "फर्जी शराब लाइसेंस" का मामला उछला (2022)।
- स्थिति: अदालत ने कोई प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश नहीं दिया।
- भ्रष्टाचार साबित नहीं हुआ, लेकिन राजनीतिक आरोप लगे।
4. नारायण राणे (केंद्रीय मंत्री)
- मामला: महाराष्ट्र में संपत्ति से संबंधित आय से अधिक संपत्ति के आरोप।
- स्थिति: ED जांच कर रही है। कोई कोर्ट में दोषसिद्धि नहीं।
5. ज्योतिरादित्य सिंधिया
- विवाद: जब कांग्रेस में थे तब उन पर आय से अधिक संपत्ति का मामला उठा था। BJP में आने के बाद मामला शांत हो गया।
- स्थिति: कोई जांच पूरी नहीं हुई।
🤔 कुछ और नाम जो विपक्ष द्वारा आरोपित हुए पर न्यायिक रूप से दोषी सिद्ध नहीं हुए:
- अमित शाह: सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस (2005 का मामला), लेकिन 2014 में कोर्ट ने सभी आरोप खारिज किए।
- पियूष गोयल: कुछ निजी लेन-देन और कंपनियों से जुड़े मामले, लेकिन कोई केस नहीं चला।
🧩 क्या कहती है ये स्थिति?
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किसी भी बड़े BJP नेता पर भ्रष्टाचार अदालत में साबित नहीं हुआ, या तो जांच अधूरी रही या क्लीन चिट मिल गई।
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कई मामलों में यह आरोप लगे कि जांच एजेंसियों का राजनीतिक उपयोग हुआ और विपक्षी नेताओं के मामलों को तेज़ी से बढ़ाया गया, जबकि सत्ताधारी दल के मामलों को धीमा कर दिया गया।
2014 से अब तक कई ऐसे गैर-BJP (मुख्यतः कांग्रेस, TMC, NCP, TDP, आदि) नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले चले, लेकिन जैसे ही वे BJP में शामिल हुए, उन पर चल रही जांच धीमी हो गई, या उन्हें क्लीन चिट मिल गई, या फिर मामले पूरी तरह खत्म हो गए।
1.हिमंता बिस्वा सरमा
- पूर्व पार्टी - कांग्रेस
- BJP में शामिल होने का वर्ष - 2015
- आरोप / घोटाला - शारदा चिटफंड घोटाला (असम कनेक्शन)
- BJP में आने के बाद - CBI जांच ठंडी पड़ी
2. सुवेंदु अधिकारी
- पूर्व पार्टी - TMC
- BJP में शामिल होने का वर्ष -2020
- आरोप / घोटाला - नारदा स्टिंग ऑपरेशन, शारदा चिटफंड
- BJP में आने के बाद - कोई केस आगे नहीं बढ़ा
3. नारायण राणे
- पूर्व पार्टी - कांग्रेस/शिवसेना
- BJP में शामिल होने का वर्ष - 2019
- आरोप / घोटाला - आय से अधिक संपत्ति का मामला
- BJP में आने के बाद - मामला निष्क्रिय
4. अजय माकन के रिश्तेदार ललित मोहन शर्मा
- पूर्व पार्टी - कांग्रेस
- BJP में शामिल होने का वर्ष - 2021 में करीबी BJP में आए
- आरोप / घोटाला - रियल एस्टेट घोटाले की चर्चा
- BJP में आने के बाद - मामला धीरे-धीरे बंद हो गया
5. अनिल देशमुख (NCP)
- पार्टी - NCP → BJP समर्थक रुख
- आरोप / घोटाला - आरोप: 100 करोड़ घोटाला
- मौजूद स्थिति - जेल में रहे, लेकिन अब मामला ठंडा हो चुका
6. भूपेंद्र सिंह (MP से)
- पूर्व पार्टी - कांग्रेस
- BJP में शामिल होने का वर्ष - 2014
- आरोप / घोटाला - E-Tender घोटाला में नाम था
- BJP में आते ही नाम गायब
7. जगन मोहन रेड्डी (YSRCP)
- पूर्व पार्टी - कांग्रेस → YSRCP (BJP से सॉफ्ट रिलेशन)
- BJP में शामिल होने का वर्ष - 2019 11 CBI केस, 7 ED केस
- BJP के साथ रिश्ते सुधरे, कार्यवाही धीमी
🔍 विशेष उदाहरण – सुवेंदु अधिकारी:
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TMC सरकार में मंत्री रहते समय नारदा और शारदा जैसे घोटालों में CBI और ED की जांच में नाम था।
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2020 में BJP में शामिल हुए, और तुरंत ही उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि बाकी TMC नेताओं पर अब भी छापेमारी होती है।
🧠 निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार के खिलाफ "ज़ीरो टॉलरेंस" की नीति का दावा करने वाली सरकार के कार्यकाल में भी ऐसे कई मामले सामने आए, जहाँ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप तो लगे, पर कानूनी रूप से या तो सिद्ध नहीं हुए या फिर कानूनी प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो सकी। ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़मी है – क्या वाकई कानून सबके लिए समान है?
"जांच एजेंसियों की कार्यवाही उस नेता की राजनीतिक वफादारी पर निर्भर करती है" — ऐसा आरोप विपक्ष लगातार लगाता रहा है।
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ये घटनाएं दर्शाती हैं कि जब कोई नेता विपक्ष में रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा होता है, तो CBI, ED, IT विभाग पूरी सक्रियता से काम करते हैं।
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लेकिन जैसे ही वही नेता BJP में शामिल हो जाता है, तो उस पर की गई कार्यवाही या तो रुक जाती है, या उसे क्लीन चिट मिलने लगती है।
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