कोचिंग :- शिक्षा या धंधा ?

 


कोचिंग: शिक्षा या व्यापार?

भारत में कोचिंग सेंटर अब शिक्षा के बजाय एक लाभकारी व्यापार का रूप ले चुके हैं। नेशनल सैंपल सर्वे 2016 के अनुसार, 7.1 करोड़ छात्र विभिन्न कोचिंग और ट्यूशन में नामांकित थे, और यह संख्या 2024 तक और बढ़ी है। कोचिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, 2010 में 1,700 कोचिंग सेंटर थे, जो 2022 में बढ़कर 4,200 हो गए। बच्चों का करियर, कामयाबी और मां-बाप की महत्वाकांक्षा ने कोचिंग को बड़ा बाजार बना दिया है। कश्‍मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के हर राज्‍य में कोचिंग माफिया ने इस कदर पैर पसार लिए हैं कि कोई इससे चाहकर भी बच नहीं पा रहा है। नर्सरी के बच्‍चों से लेकर स्‍कूल और कॉलेज के छात्रों की ट्यूशन तक और आईएएस, एमबीए, सीए, बैंकिंग, आईआईटी, जेईई, आईटी, मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, रेलवे तक छात्र और उनके परिजन इन कोचिंग पर निर्भर हो गए हैं। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी इन कोचिंग में पढ़ने वालों की सुरक्षा की गारंटी जीरो है।

मध्यम वर्गीय परिवार क्यों फंसते हैं?

1. सामाजिक दबाव और महत्वाकांक्षा 

भारतीय समाज में माता-पिता की महत्वाकांक्षा और सामाजिक दबाव के कारण बच्चे कोचिंग की ओर प्रेरित होते हैं। माता-पिता अपने सपनों को बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं, जिससे बच्चों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिसकी वह से वो खुद भी तय नहीं कर पाते है की उन्हे क्या करना चाहिए और क्या नहीं । माता -पिता समाज के दबाव के कारण कभी कभी इतने महत्वाकांक्षी हो जाते है की उनके खुद के सपने वह बच्चों पर थोप देते है । जिसकी वजह से बच्चे अपने सपने दबा कर माता-पिता के सपने पूरे करने लग जाते है । इसकी वजह से उन पर मानसिक दबाव बढ़ता है, जिसको झेल ना पाने की वजह से वह आत्महत्या तक कर लेते है । 

2.सरकारी शिक्षा प्रणाली की कमजोरियाँ 

देश मैं सरकारी शिक्षा प्रणाली बहुत ही खराब है । सरकारी स्कूल, कॉलेज में शिक्षा की गुणवत्ता की कमी , संसाधनों की कमी , कुछ सरकारी शिक्षकों की कमी तो कुछ सरकार की कमी की वह से अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग भेजने को मजबूर हो जाते है । जिसकी वजह से कोचिंग एक व्यापार की तरह पनपता जा रहा है । 

बिहार सरकार ने सरकारी स्कूल शिक्षकों पर निजी ट्यूशन पढ़ाने पर रोक लगाई है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की कोशिश की जा रही है।

कोचिंग उद्योग के नकारात्मक प्रभाव

1.मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

कोचिंग सेंटरों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और दबाव के कारण छात्रों में मानसिक तनाव बढ़ता है। राजस्थान के कोटा में हर साल कई छात्र आत्महत्या करते हैं, जिससे कोचिंग सेंटरों की भूमिका पर सवाल उठते हैं।

2.आर्थिक बोझ

कोचिंग सेंटरों की उच्च फीस मध्यम वर्गीय परिवारों पर आर्थिक दबाव डालती है। कोटा जैसे शहरों में इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए वार्षिक फीस दो से चार लाख रुपये तक होती है।

कोचिंग उद्योग पर नियंत्रण की आवश्यकता

1. नियमन और विनियमन

राजस्थान सरकार ने कोचिंग सेंटरों को नियंत्रित करने के लिए "राजस्थान कोचिंग सेंटर (नियंत्रण एवं विनियमन) विधेयक, 2025" प्रस्तुत किया है, जिसमें पंजीकरण, फीस नियंत्रण, कक्षा की अवधि, और काउंसलिंग जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं। 

2. भ्रामक विज्ञापनों पर रोक

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने कोचिंग सेंटरों द्वारा भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें झूठे दावे, गारंटीकृत सफलता, और छात्रों की सहमति के बिना उनकी सफलता की कहानियों का उपयोग शामिल है।

समाधान और सुझाव

  • शिक्षा प्रणाली में सुधार: सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है, जिससे कोचिंग की आवश्यकता कम हो।

  • वैकल्पिक शिक्षा मॉडल: ऐसे शिक्षा मॉडल विकसित किए जाएं जो सभी छात्रों को सस्ती और सुलभ शिक्षा प्रदान करें।

  • जागरूकता अभियान: अभिभावकों और छात्रों को कोचिंग संस्कृति के संभावित नुकसानों के बारे में जागरूक किया जाए।

  • मानसिक स्वास्थ्य समर्थन: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग और समर्थन प्रणाली विकसित की जाए।

निष्कर्ष

भारत में कोचिंग उद्योग का व्यावसायीकरण शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। मध्यम वर्गीय परिवार सामाजिक दबाव, शिक्षा प्रणाली की कमजोरियों, और कोचिंग सेंटरों के भ्रामक दावों के कारण इस जाल में फंसते जा रहे हैं। सरकार को कोचिंग सेंटरों पर नियंत्रण, शिक्षा प्रणाली में सुधार, और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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