आखिर देश में इतना निजीकरण क्यों ?

 


भारत में निजीकरण की प्रवृत्ति हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है। इसके पीछे कई आर्थिक, प्रशासनिक और रणनीतिक कारण हैं।साधारण भाषा में निजीकरण  का अर्थ निजी क्षेत्र को उन क्षेत्रों में उद्योग लगाने की अनुमति देना है जो पहले सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे! इस नीति के तहत कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया गया था! निजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें निजी क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के मालिकाना हक स्थानांतरण निजी हाथों में हो जाता है!

निजीकरण का अभिप्राय है कि आर्थिक क्रियाओं में सरकार के हस्तक्षेप को उत्तरोत्तर कम किया जाए, प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा पर आधारित निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाए, सरकारी खजाने पर बोझ बन चुके और अलाभकारी सरकारी प्रतिष्ठानों का विक्रय अथवा विनिवेश के माध्यम से निजी स्वामित्व और नियंत्रण को सौंप दिया जाए, प्रबंधन की कुशलता को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी प्रतिष्ठानों में निजी निवेशकों की सहभागिता बढ़ाई जाए और नए व्यवसायिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना करते समय निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाए

जिस अर्थ में निजीकरण का प्रयोग किया जाता है, वह विश्वभर में विनिवेश की प्रक्रिया है! इस प्रक्रिया में शेयरों को राष्ट्र स्वामित्व वाली कंपनियों से निजी क्षेत्र को बेचना सम्मिलित है! विनिवेश राज्य से निजी क्षेत्र को बेचना सम्मिलित है विनिवेश राज्य निजी क्षेत्र को 100% कम स्वामित्व का अंतरण है!

यदि सरकार द्वारा परिसंपत्ति का केवल 49% बेचा जाए और शेष स्वामित्व अपने पास रखा जाता है तो इसे विचारार्थ निजीकरण कहा जाता है, यदि राष्ट्र स्वामित्व शेयरों की बिक्री 51% तक की जाए तो स्वामित्व निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किया जाएगा और इसके तब भी निजीकरण कहा जाएगा!



🔑 भारत में निजीकरण के प्रमुख कारण

1. सरकारी घाटे को कम करना

कई सार्वजनिक उपक्रम (PSUs) लगातार घाटे में चल रहे हैं, जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है। इन उपक्रमों को चलाने के लिए करदाताओं के पैसे का उपयोग होता है, जो दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि "व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है" और घाटे में चल रहे उपक्रमों को चलाना अर्थव्यवस्था पर बोझ डालता है।

2. प्रभावशीलता और दक्षता में सुधार

निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के कारण सेवाओं की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार होता है। निजी कंपनियां लाभ के लिए काम करती हैं, जिससे वे संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करती हैं और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करती हैं।

3. राजस्व सृजन और निवेश आकर्षित करना

निजीकरण से सरकार को विनिवेश के माध्यम से राजस्व प्राप्त होता है, जिसे बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण योजनाओं में निवेश किया जा सकता है। इसके अलावा, निजीकरण से विदेशी और घरेलू निवेशकों का विश्वास बढ़ता है, जिससे अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि होती है।

4. रणनीतिक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना

सरकार का उद्देश्य है कि वह केवल रणनीतिक क्षेत्रों जैसे रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा में ही अपनी उपस्थिति बनाए रखे, जबकि अन्य क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाए। इससे सरकार अपनी प्राथमिकताओं पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकती है।


⚖️ निजीकरण के लाभ और चुनौतियाँ

✅ लाभ:

  • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार: निजी कंपनियां उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करती हैं।

  • राजस्व में वृद्धि: सरकार को विनिवेश से तत्काल राजस्व प्राप्त होता है।

  • निवेश में वृद्धि: निजीकरण से विदेशी और घरेलू निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।

  • प्रभावशीलता में सुधार: निजी कंपनियां संसाधनों का कुशलता से उपयोग करती हैं।

हानि 
  •  सामाजिक हित के स्थान पर स्वहित का महत्व बढेगा!
  •  सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की कमी होगी!
  • वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ जाएगा!
  •  गरीब वर्ग को और अधिक संघर्ष करना पड़ेगा!

❌ चुनौतियाँ:

  • रोजगार की अनिश्चितता: निजीकरण के बाद कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा कम हो सकती है।

  • सामाजिक असमानता: निजी कंपनियां लाभप्रद क्षेत्रों में अधिक ध्यान देती हैं, जिससे पिछड़े क्षेत्रों की उपेक्षा हो सकती है।

  • मूल्य वृद्धि: निजी कंपनियां लाभ के लिए काम करती हैं, जिससे सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।

  • सार्वजनिक हितों की अनदेखी: निजीकरण से सार्वजनिक सेवाओं का उद्देश्य लाभ कमाना हो सकता है, जिससे सामाजिक कल्याण प्रभावित हो सकता है। Hindi Gyan Kosh


🧭 निष्कर्ष

भारत में निजीकरण एक आवश्यक आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य सरकारी घाटे को कम करना, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना और निवेश को प्रोत्साहित करना है। हालांकि, इसके साथ सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं, जिन्हें ध्यान में रखते हुए संतुलित नीति अपनाना आवश्यक है।

यदि आप किसी विशेष क्षेत्र (जैसे रेलवे, बैंकिंग, या शिक्षा) में निजीकरण के प्रभावों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं।

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