बेचारा घर का बड़ा बेटा !


बचपन में हम कितने खुश होते है ये सोच कर कि हम घर के बड़े बेटे है । और होते भी क्यों ना क्योंकि हमारे माता पिता के साथ साथ सारे रिश्तेदार भी हमें घर का बड़ा बेटा कह कर सम्मानित जो करते थे । हमारी हर जरुरत भी घरवाले हमे बड़ा बेटा समझकर पूरी कर दिया करते थे क्योंकि उस समय हमारे माता पिता से सवाल करने वाले हमारे भाई बहन इतने समझदार जो नहीं होते । घरवालों को भी हमसे यह उम्मीद होती है कि हमारा बड़ा बेटा हमारा सहारा बनेगा वो इसी उम्मीद से हमारी हर ख्वाहिशों को पूरी किया करते है । लेकिन जब हमारे छोटे भाई बहन जैसे जैसे बड़े होने लगते है तो धीरे धीरे हमारी कुछ कुछ ख्वाहिशें अधूरी रहने लग जाया करती है । क्योंकि फिर हमारे माता पिता को बड़े बेटे के साथ साथ छोटे बेटे बेटियों की भी जरूरतें पुरी करनी पड़ने लग जाती है ।

लेकिन जैसे जैसे बड़े होते जाते है फिर हमारे उपर घर की जिम्मेदारियां बढ़ने लग जाति है । फिर वही घर का बड़ा बेटा अपनी ख्वाहिशों को अधूरी रख कर छोटे भाई बहन की ख्वाहिशें पुरी करने लग जता है । अपने माता पिता का सहारा बनने लग जाता है । वह समाज और रिश्तेदारों के तानों के डर से अपनी ख्वाहिशें अधूरी रख कर परिवार की जरूरतें पूरी करने लग जाता है । समाज के कुछ लोग तो कुछ रिश्तेदार परिवार की जरूरतें पूरी ना करने की बजाय खुद जरूरतें पुरी करने कि सलाह देते है तो कुछ सिर्फ़ परिवार कि जरूरतें पुरी करने की सलाह देते है । बेचारा बड़ा बेटा समाज और रिश्तेदारों की बातों में भ्रमित हो जाता है वह स्वयं के लिए करे या परिवार के लिए करे । अगर वह स्वयं के लिए कुछ करे तो भी समाज और रिश्तेदार यह ताने मारने लग जाते है कि परिवार के बारे में सोच नहीं रहा है साथ ही छोटे भाई बहन को भी यह लगने लग जाता है कि भाई हमारे बारे में कुछ सोच नहीं रहा है | उस वक्त छोटे भाई बहन को छोटे होने का भी अहसास होने लगता है । और स्वयं के लिए भी करे तो समाज और रिश्तेदार कहने लग जाते है कि परिवार को ले कर नहीं चल रहा है । बेचारा बड़ा बेटा दोनो तरफ से भ्रमित रहता है कि वह क्या करे और क्या ना करें । समाज और रिश्तेदारों की बातों से उसे भी कभी कभी अहसास होने लगता है कि आज में अपने परिवार के किए कुछ करु तो सही पर क्या मेरा परिवार भी मेरे लिए बाद में कुछ करेगा ? आज में अपने भाई बहन को लेकर भी चल तो कल क्या मेरे भाई बहन भी मुझे ले कर चलेंगे भी या नही ? ऐसे कई सवाल उठने लगते है ! जैसे तैसे इन सारे सवालों और भ्रमों को अपने अंदर दबाकर वह अपने परिवार को लेकर चलने लगता है । वह यह सोच लेता है कि में परिवार का एक बड़ा बेटा हूं और परिवार को साथ लेकर चलना ,परिवार की जरूरतों को पूरी करना मेरा कर्तव्य भी है और मेरी जिम्मेदारी भी है । आज अगर में अपने परिवार को ले कर नहीं चलूंगा तो समाज में कोई भी मेरा मान सम्मान नहीं करेगा । परिवार का बड़ा बेटा बाप कि जिम्मेदारी ले लेता है वह अपने बाप का बोझ हल्का कर देता है । वह अपनी ख्वाहिशों को दबाकर अपने भाई बहन की ख्वाहिशों को पुरी करने लग जाता है अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने लग जाता है । अपने भाई बहन को पढ़ई, घर के राशन से लेकर घर के निर्माण तक की जिम्मेदारी ले लेता । वह कभी अपनी ख्वाहिशों को अपनी जरुरतों को कभी नहीं बताता है । और ना ही यह जताता है उसने परिवार के लिए अपने भाई बहन के लिए क्या क्या किया । हां अगर परिवार का कोई सदस्य दिल दुखा दे तो उसे समाज और रिश्तेदारों की सारी बातें याद आने लगती है उस वक्त वह जरुर सोचने लगता है कि काश में अपने लिए ही कुछ किया होता । अब खैर वह क्या कर सकता है । जो वक्त के साथ साथ किया जाए वह हो जाता है । बेचारा बड़ा बेटा फिर से तो वह वक्त  नहीं ला सकता फिर से अपनी ज़िंदगी को वहीं से शुरु नहीं कर सकता । बस अपनी तसल्ली के लिए अपने परिवार को अपने भाई बहन के लिए जो किया उन्हे जता कर खुद के मन को हल्का कर सकता है । क्योंकि उसके लिए बिता हुआ वक्त वापस लौट के तो नहीं आ सकता । 

"कद्र करो अपनों से बड़ों की, ना जाने उन्होनें खुद कि कितनी ख्वाहिशें दबाई है छोटों की ख्वाहिशें पूरी करने में"

टिप्पणियाँ